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अखंड भारत में ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की मानव सेवा, विचार गोष्ठी का आयोजन

रिपोर्ट सैयद तुफैल अहमद

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**पूर्व जिला पंचायत सदस्य* *हाफ़िज़ इरफ़ान ने गंगा जमुनी* *तहज़ीब हिंदू मुस्लिम* *एकता पर आधारित* *कार्यक्रम आयोजित* *कर दिया एकता* *का संदेश*


 *बदायूं (जे०आई०न्यूज़) सहसवान आपको बता दें मुख्य अतिथि मौलाना डॉ यासीन* *उस्मानी साहब* ने कार्यक्रम की महत्वपूर्णता बताते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन समय की बड़ी ज़रूरत है ।उन्होंने कहा के हजरत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती यानी ग़रीब नवाज़ हमारे देश की शान है उन्होंने बग़ैर किसी भेद भाव के जनसेवा अमनों शांति और इत्तिहाद का पैग़ाम दिया और अपनी इन सेवाओं से यह साबित किया के ताक़त और दौलत से नहीं बल्कि किरदार से अल्लाह के बंदों के दिलों को फतह किया जा सकता है उनका यह संदेश विशेष रूप से हमे याद रखना चाहिए के एक बनो नेक बनो सबसे मोहब्बत करो नफ़रत किसी से नहीं।


कार्यक्रम आयोजक हाफ़िज़ इरफ़ान ने* भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़: भूख, शिक्षा और आश्रय का पहला संगठित अभियान हें 

भारत की धरती पर संत, फकीर और महापुरुषों की कभी कमी नहीं रही। किसी ने भक्ति का संदेश दिया, किसी ने ज्ञान का, किसी ने वैराग्य का। लेकिन ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ (हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती) एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने ईश्वर की इबादत को सीधे इंसान की ख़िदमत से जोड़ दिया।

ख़्वाजा साहब का मानना था कि

अगर इंसान भूखा है, अशिक्षित है और बेघर है, तो सिर्फ़ उपदेश से समाज नहीं बदल सकता।

इसी सोच से उन्होंने अजमेर में एक ऐसा काम शुरू किया, जो आगे चलकर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।

भूख के ख़िलाफ़ संघर्ष: लंगर

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दरवाज़े पर कोई भूखा नहीं लौटता था।

लंगर में न जाति पूछी जाती थी, न धर्म, न हैसियत।

अमीर और गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर खाना खाते थे।

यह उस समय की बात है जब *समाज ऊँच-नीच में बँटा हुआ था।


 *गुन्नौर जामा मस्जिद से आए मौलाना* *मुनफिक क़ादरी* *साहब* ने कहा कि 

ख़्वाजा साहब की ख़ानक़ाह सिर्फ़ इबादत की जगह नहीं थी,

वह इंसानियत की पाठशाला थी।

यहाँ लोगों को ईमानदारी, प्रेम, सहनशीलता और इंसाफ़ की शिक्षा दी जाती थी।

कोई फीस नहीं, कोई भेदभाव नहीं।


 *आचार्य दुर्वेश कुमार जी ने अपनी* तक़रीर में कहा कि 

आश्रय: बेघर को सहारा

मुसाफ़िर हों, ग़रीब हों या सताए हुए लोग—

ख़ानक़ाह उनके लिए सुरक्षित ठिकाना थी।

यहाँ कोई राजा नहीं था, कोई प्रजा नहीं—सिर्फ़ इंसान था।

बिना राजा, बिना सत्ता

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि

उन्होंने यह सब बिना किसी राजा या बादशाह के सहारे किया।

यह जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा चलाया गया काम था।

बाद में राजा ज़रूर आए, लेकिन आंदोलन उनकी वजह से नहीं चला।

एक आंदोलन, जो फैलता गया

ख़्वाजा साहब के बाद उनके शिष्यों ने यही रास्ता अपनाया।

दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बंगाल और दक्कन तक

लंगर, ख़ानक़ाह और मानव-सेवा का यह सिलसिला फैलता गया *।

सदियों बाद भी यह परंपरा ज़िंदा है।


 *पन्नालाल इंटर कालेज के* *प्रिंसिपल* *जनाब सुजीत सिंह जी* * ने 

प्रसन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि पहली बार किसी मस्जिद/मदरसा के कार्यक्रम में शरीक होने का मौका मिला है उन्होंने अपने भाषण में कहा कि 

हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ भारतीय उपमहाद्वीप के पहले ऐसे महापुरुष थे

जिन्होंने भूख, शिक्षा और आश्रय के लिए

एक संगठित, व्यापक और निरंतर जन-आधारित अभियान चलाया।


 *बाबा महेंद्र दास जी महाराज गौबरा* *आश्रम ने* सभी से हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा कि एकताबद्ध तरीकों से समाज के कल्याण हेतु कार्य करना चाहिए 

ईश्वर के सच्चे बंदे, ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी के

 रास्ता

इंसान के दिल से होकर जाता है।


 *विजेंद्र यादव सदस्य जिला* *पंचायत ने* *सभी अतिथियों को शाल* *पहनाकर सम्मानित किया।* 

मदरसा प्रबंधक हाफ़िज़ अब्दुल हादी का़री मुसव्विर,मुनाजिर हुसैन ,मुकर्रम अंसारी,अजमल अंसारी नाहिद आलम अंसारी हर्षित यादव ने अतिथियों को माला पहनाकर स्वागत किया 

अंत में *ख़्वाजा हमीदउद्दीन* *हाशमी सज्जादानशीन आस्ताना* *गौ़सिया चमनपुरा* *शरीफ़* ने देश प्रदेश में शांति खुशहाली अमन-चैन कायम रहने की दुआ फ़रमाई।

कार्यक्रम में क़ारी राशिद,हकीम नासिर हाफ़िज़ इक़बाल हाफ़िज़ नाज़िम मौलाना अज़ीम, क़ारी इरफ़ान रजा़,

हाफ़िज़ इस्लाम,इंजी शाने आलम,शैवू राईन आदि मुख्य रूप से शामिल हुए

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